पद राग धनाश्री सारंग नं॰ १०७

मना मग चलत मिल्या महाराज।
पुन्य पूर्वला प्रगट भया रे, धन्य धन्य उगो दिन आज॥टेर॥

मैं नहीं जाणू आप मने जाणे, मने आई न नुगरा ने लाज।
तीन लोक रा नाथ निरंजन, चवदे लोक स्वराज॥१॥

करुणा निधान दया के समुन्दर, शब्द सुणाई आवाज।
करी सनकारी ऐसी अमरलोक की, सुफल किया सब काज॥२॥

श्री पूज्य नारायण श्री देवपुरी सा संतजनों का सिर ताज।
श्री दीप कहे चरणों का चेरा, राखी जगत में लाज॥३॥