



गुरुपूर्णिमा पर सभी भक्तों ने गुरुदेव के प्रति अपना प्रेम और समर्पण भी व्यक्त किया। ऐसा दिव्या वातावरण सिर्फ गुरुपूर्णिमा के दिन ही हो सकता हैं क्योकि ये दिन गुरु और शिष्य दोनों के लिए बहुत ही खास होता है।
ॐ आश्रम, जो की बहुत ही सुन्दर और दिव्य स्थान हैं क्युकी वह विराजमान हैं श्री अलखपुरी जी सिद्ध पीठ परंपरा । बहुत समय के इंतजार के बाद और बहुत ही अच्छी तरह से सजने सवरने के बाद श्री नंदीदेव को भी ॐ आश्रम लाया गया। नंदीदेव जो की भगवान् श्री शिव के वाहन हैं जिनके बिना शिव की सवारी अधूरी हैं। उन नंदीदेव का वैदिक मंत्रो के साथ ॐ आश्रम में स्वागत किया गया और इसके साथ साथ किया गया ॐ आश्रम का शिलान्यास।
संस्कृत के शब्द नंदी का मतलब है ख़ुशी, उत्साह और संतुष्टि। नंदी (बैल) भगवान् शिव के रक्षक और उनके वहां भी है, नंदीदेव अपने आप में एक भक्ति और दिव्यता के प्रतिक है। बैल एक तरह से घमंड और शक्ति का प्रतीक है, इससे पता चलता है की भगवान् शिव अपने भक्तों के घमंड का हरण करके उन्हें बुद्धि की शक्ति देते हैं। संस्कृत में बैल को वृषभ कहते हैं जिसका एक मतलब होता हैं "धर्म"। नंदी को नंदीश्वर और नंदीदेव भी कहते हैं जिन्हे आप किसी भी शिव मंदिर में भगवान् शिव के सामने देख सकते हैं।
गुरुपूर्णिमा के इस उत्तम अवसर पर एक और कार्यक्रम हुआ जिसमें सुदर्शन पूरी जी को "सन्यास दीक्षा" भी दी गई। जिससे सुदर्शन पूरी जी ने विश्वगुरुजी के संत समाज में कदम रख दिए। दीक्षा के बाद सुदर्शन पूरी जी को स्वामी सुदर्शन पूरी जी भी खा जायेगा। किसी साधक के जीवन में अपने गुरु के द्वारा सन्यास दीक्षा लेना उसके जीवन की जीवन की अहम् और सबसे बड़ी उपलब्धि है।
ये तो विश्वगुरुजी के जीवन की व्यस्तता की छोटी सी झलक थी परन्तु आज भी विश्वगुरु जी का जीवन सदैव व्यस्त ही रहता है। बड़ी उपाधियों के साथ सदैव बड़े कर्तव्य भी आते है और आदरणीय गुरुदेव अपने हर एक कर्तव्य का निर्वाह भली भांति करते है।
