"दैनिक जीवन में योग" के अनुयायी लोगों के समूहों का स्वामी जी ने पेड लगाने का आह्मन किया हैं, जिससे स्थानीय निवासियों और जीवों को संरक्षण मिले और उनमें वृद्वि हो। पूरे विश्व भर में फैले स्वामी जी के शिष्य अपनी - अपनी जगह पर वनसंरक्षण के कार्यो में सक्रियता से भाग ले रहे हैं। पिछले दो वर्षो में हजारों पेड रोपे गये हैं। वनसंरक्षण की रिपोर्टें हर महीने मिल रही हैं।
 
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शिवमहापुराणम्, पञ्चम उमासंहिता, अध्याय १२ में लिखा है:
 
तत्र पुत्रा भवन्‍त्येते पादपा नात्र संशय:।
परं लोकं गत: सोऽपि लोकानाप्नोति चाक्षयान्॥१८॥
 
ये लगाये हुए वृक्ष दूसरे जन्म में नि:सन्‍देह उसके पुत्र होते हैं।
मृत्यु के बाद वह अक्षय लोकों को प्राप्त होता है॥१८॥
 
पुष्पै: सुरगणांसर्वान्‍फलैश्चापि तथा पितृन्।
छायया चातिथीन्‍सर्वान्पूजयन्‍ति महीरुहा:॥१९॥

वृक्ष अपने फूलों से देवताओं की, फलों से पितरों की,
छाया से सभी अतिथियों की पूजा करते हैं॥१९॥
 
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किन्नरोरगरक्षांसि देवगन्धर्वमानवा:।
तथैवर्षिगणाश्चैव संश्रयन्‍ति महीरुहान्॥२०॥

किन्नर, सर्प, राक्षस, देवता, गन्‍धर्व, मनुष्य तथा
ऋषिगण सभी वृक्षों का सहारा लेते हैं ॥२०॥
 
पुष्पिता: फलवन्‍तश्च तर्पयन्‍तीह मानवान्।
इह लोके परे चैव पुत्रास्ते धर्मत: स्मृता:॥२१॥

फूले-फले वृक्ष इस लोक तथा परलोक में मनुष्यों को तृप्त करते हैं।
इसलिये ये धर्मपुत्र कहे गये हैं॥२१॥
 
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तडागकृद्वृक्षरोपी चेष्टयज्ञश्च यो द्विज:।
एते स्वर्गान्न हीयन्‍ते ये चान्ये सत्यवादिन:॥२२॥

तालाब खुदवाने वाला, वृक्षारोपण करने वाला, यज्ञ करने वाला तथा
सत्यवादी ब्राह्मण – ये कभी स्वर्ग से च्युत नहीं होते॥२२॥
 
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जाडन् आश्रम में भी वनसंरक्षण की दीर्घकालीन योजना बनी हैं। आज तक २००.००० पेड मरुस्थल को हरा भरा बनाने के लिये रोपे (उगाये) गये हैं।