ॐ विश्व गुरु दीप आश्रम
मधवानन्‍द मार्ग
कीर्ति नगर, श्याम नगर
जयपुर ३०२०१९, राजस्थान, भारत
फोन:+९१ १४१ २२९३ ८५६
 
 

Jaipur-Ashram

परम पूज्य धर्म सम्राट परमहंस स्वामी माधवानन्‍द महाराज - विश्वगुरु स्वामी महेश्वरानंद के गुरु - द्वारा १९६९  में स्थापित

 

ॐ विश्व गुरु दीप आश्रम, जयपुर (राजस्थान) की स्थापना

 

सन् १९६९ में श्री महाप्रभुजी का साहित्य प्रकाशित करवाने के सिलसिले में मैं जयपुर आया हुआ था। यहाँ पर कुछ दिनों के लिए मैंने, सत्संग भवन, रामनिवास बाग, जयपुर में सत्संग का आयोजन किया। भक्तजनों के आग्रह पर मैं अशोक वाटिका 'सी-स्कीम' में ठहरा। वहाँ से आई.पी.एस. श्री कुन्दनलालजी शर्मा मुझे अपने निवास स्थान पर ले गये। दो माह तक मैं वहाँ रहा। आई.पी.एस. साहब एवं उनकी धर्मपत्नी बहुत श्रद्घालु एवं धार्मिक प्रकृति के हैं। उन्होंने मेरी बहुत अच्छी प्रकार से आवभगत की। इधर भी महाप्रभुजी का साहित्य प्रकाशित हो रहा था।

दिनांक २ अक्टूबर, १९६९ के दिन परम भक्तराज श्री रोशनमलजी माथुर भू.पू. ट्रांसपोर्ट कमिश्नर जो कि पूर्व में पाली व नागौर जिले के जिलाधीश भी रह चुके थे, मेरे पास आये एवं आग्रहपूर्वक अपने निवास स्थान पर ले गये। वहां पर सत्संग हेतु बहुत सुन्दर व्यवस्था की गयी। उन्होंने प्रेमपूर्वक मुझे भोजन करवाया। इसके उपरान्त उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से आग्रहपूर्वक मुझे कहा, ''स्वामीजी! मैं आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ।'' उनके यह वचन सुनकर मैंने उनसे कहा, ''श्री महाप्रभुजी अपने भक्तों की आकांक्षा अवश्य पूरी करते हैं। आप अपने मन की इच्छा को मुझे बताइये।''

तब श्री रोशनमलजी ने मुझसे कहा कि, ''हे स्वामीजी! आज महात्मा गाँधी का जन्म-दिवस है, अत: नियमित रूप से जन-कल्याण एवं सत्संग कराने के उद्देश्य से मैं आश्रम के लिए कुछ भूमि आपको भेंट करना चाहता हूँ। मेरे पास पाली एवं जयपुर में कुछ प्लॉट (जमीन) है। आप जहां पर भी आश्रम बनाना चाहें, उस स्थान की जमीन मैं आपको सहर्ष भेंट करने के लिए तैयार हूँ।''

श्री रोशनमलजी के इस पवित्र निवेदन को सुनकर मैं कुछ सोचने लगा। मैंने उनसे कहा कि, ''जिस महात्मा को आश्रम हेतु भूमि की आवश्यकता हो उसे भूमि देंगे तो उत्तम रहेगा। क्योंकि मेरे पास तो वैसे भी अहमदाबाद, नीपल (पाली) तथा खाटू में श्री महाप्रभुजी के आश्रम हैं। मुझे अब नये आश्रम हेतु भूमि की आवश्यकता भी नहीं है। अत: इसके लिए मुझे क्षमा करें।''

उन्होंने मेरे इतना कहने पर भी बार-बार आग्रह किया परन्तु मैंने उनके इस आग्रह पर विशेष ध्यान नहीं दिया। मैं श्री शर्माजी के बंगले में आ गया। मैंने श्री शर्माजी से भी श्री रोशनमल जी द्वारा भूमि प्रदान की चर्चा की। इस पर श्री कुन्दनलालजी शर्मा कहने लगे कि, ''आप भोले साधु हैं, आप यह तो सोचिए भला जयपुर और पाली जैसे आबादी वाले शहरों में कौन अफसर अपनी जमीन योंही दान में दे देगा? आप तो थोड़ी बहुत मीठी-मीठी बातों से योंही बच्चों की तरह राजी (खुश) हो जाते हैं। ऐसे ही आपको खुश करने के लिए कह दिया होगा। मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता।''

श्री कुन्दनलालजी की उक्त बात ने मुझे उलझन में डाल दिया। तब मैंने विश्वास के साथ उनसे कहा, ''आपकी बात कुछ हद तक सही हो सकती है परन्तु सभी एक जैसे नहीं हो सकते। श्री रोशनमलजी निसन्देह, नि:स्वार्थ भक्तराज हैं। उनके द्वारा भूमि प्रदान करने में मुझे उनके स्वार्थ का आभास नहीं हो रहा है। वे गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी एक महात्मा हैं।''

श्री कुन्दनलालजी मेरी इस बात पर तर्क देते हुए कहने लगे, ''आगर आपको उन पर पूरा विश्वास है तो आप जयपुर में ही आश्रम बनवाने हेतु भूमि लीजिये जिससे कि आपके शुभ दर्शन एवं सत्संग का लाभ स्थानीय भक्तजनों को तो सुलभ हो ही जायेगा। साथ ही साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी आपका एक पवित्र आश्रम बन जायेगा। श्री महाप्रभुजी के सत्संग भवन के निर्माण से यहाँ की जनता भी भव-दु:खों से तर जायेगी।''

श्री शर्माजी के विचारों पर मैंने गौर किया। मुझे भी जयपुर में ही आश्रम बनाना उचित लगा। तभी मैंने श्री रोशनमलजी को टेलीफोन किया और कहा कि, ''रोशनमलजी, मैं आपके विचारों से सहमत हूँ। मैंने यह सोच लिया है कि श्री महाप्रभुजी का मन्दिर जयपुर में बनवाया जावे। अत: मैं तथा श्री कुन्दनलालजी आपकी जयपुर वाली जमीन को आश्रम हेतु देखने आ रहे हैं। हम लोग चार बजे आपके पास आयेंगे।''

मेरे इतना कहने पर श्री रोशनमलजी अति प्रसन्न हुए तथा फोन पर ही कहा था कि, ''अवश्य पधारिये। मैं आपकी अगवानी हेतु बंगले पर ही उपस्थित मिलूँगा।''

पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार उसी दिन ठीक चार बजे मैं और कुन्दनलालजी उनके बंगले पर पहुँचे। हमें देखकर श्री रोशनमलजी फूले नहीं समा रहे थे। उन्होंने हमें फल-दूध का नाश्ता कराया। तत्पश्चात् उनकी कार द्वारा हम जमीन देखने के लिए रवाना हो गये। सोडाला स्थित यह जमीन हमें आश्रम हेतु उचित लगी। यहाँ पर श्री रोशनमलजी ने इस जमीन का पट्टा व अन्य कागजात भी समर्पित कर दिये।

यह भूमि सोडाला के समीप कीर्ति नगर सोसायटी के अन्तर्गत है। लाखों रुपये का प्लॉट नि:स्वार्थ एवं पवित्र भावना से भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभुजी के आश्रम-भवन हेतु भेंटकर श्री रोशनमलजी माथुर ने अपनी सच्ची भक्ति का परिचय दिया। इस पवित्र स्थान का नाम ''श्री दीप आश्रम'' रखा गया है।

श्री दीप आश्रम, जयपुर (राजस्थान) में आश्रम की स्थापना से भारत के समस्त भक्तजनों को अपार हर्ष हुआ।

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