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कैलाशपति ने कैलाश से हिमालय बद्रीनाथ धाम की ओर प्रस्थान किया। वहाँ दुर्गम पहाड़ों के बीच अपने श्री शम्भू पंच अटल अखाड़े में पहुंचे, वहां पर परम तपस्वी, साक्षात् अलख पुरुष श्री अलखपुरीजी महाराज से मिले। दोनों ईश्वरीय विभूतियों का मिलन विश्व के लिए वरदान रूप था।
भगवान शिव ने श्री अलखपुरीजी से कहा कि मैं कुछ समय के लिए संसार में दु:खी जीवों के उद्धार के लिए प्रकट होना चाहता हूँ सो आप आज्ञा देवें। आप तो जगतगुरु हैं, मैं भी गुरु ही मानता हूँ। इस पर महायोगी श्री अलखपुरीजी महाराज ने मधुर मुस्कान के साथ कहा, कि आप तो स्वयं शिव हैं, समर्थ हैं, सर्वशक्तिमान है, जो चाहे सो कर सकते हैं, आप देवाधिदेव महादेव हैं। आज से आपका नाम श्री देवपुरीजी महादेव होगा।
(जैसा कि श्री महाप्रभुजी ने अपने ''अनुभव प्रकाश'' में पृष्ठ नं. 11-12 पर लिखा है।)
चौपाई—
श्री अलखपुरीजी अवधूत अनादि। अटल अखाड़े अनहद गादी॥
उन मून सेव श्री देवपुरीजी साजे। ज्ञान वैराग्य दियो है ताजे॥
दोहा—
हंस अनादि आत्मा श्री अलखपुरीसा निर्वाण।
श्री देवपुरीजी महादेव श्री दीप हरि दर्शन जाण।
उसके बाद श्री देवपुरीजी महादेव राजस्थान के आबू पर्वत के लिए प्रस्थान कर गये। वहाँ पर अदृश्य रूप में रहने लगे। उस समय भारत में अंग्रेजों के संरक्षण में राजाओं का राज था।
 
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आश्रम गांव कैलाश में
 

अक्षय तृतीया को विवाह का आशीर्वाद

योगीराज प्रात:काल जंगल की ओर जा रहे थे। उसी गांव (कैलाश) के एक हरिजन ने उन्हें देखकर प्रणाम किया। योगीराज ने उस हरिजन को आशीर्वाद दिया, ''आनन्द करो बच्चा, इस अक्षय तृतीया को तुम्हारा विवाह हो जायेगा।'' यह वचन सुनकर हरिजन स्तब्ध रह गया। हरिजन ने कहा, ''यह कैसा आशीर्वाद दे दिया? गुरुदेव मैं तो शादीशुदा हूँ, मेरे पाँच बच्चे हैं और दूसरी शादी करने की इच्छा भी नहीं है। फिर आपका यह आशीर्वाद......?''
''मैं जानता हूँ बच्चा। इस समय जो तेरी अद्र्धांगिनी है, उसका जीवन परसों प्रात: चार बजे तक ही है। फिर वह तुम्हें व तुम्हारे बच्चों को छोड़कर स्वर्ग चली जायेगी। अत: तुम्हारे परिवार की भलाई के लिए ही मैंने यह आशीर्वाद तुम्हें दिया है।'' योगीराज ने आत्मविश्वासपूर्वक उस हरिजन को पूरी स्थिति से अवगत कराया। योगीराज के वचनों के अनुसार ही उस हरिजन की पत्नी पूरे परिवार को रोता-बिलखता छोड़ स्वर्ग में चली गयी। पूरे परिवार में शोक का वातावरण हो गया।
कुछ ही दिनों के पश्चातठीक अक्षय तृतीया को उस हरिजन का पुन: विवाह हो गया। यह चमत्कार देखकर वह हरिजन योगीराज श्री देवपुरीजी महाराज से बहुत प्रभावित हुआ। इसके बाद वह रोज प्रात: योगीराज के आश्रम जाता ही रहता था।
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